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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
बहारें तेरी मुर्ग़ान-ए-चमन तेरे चमन तेरागुलों में बू है तेरी रंग तेरा बाँकपन तेरा
शाह अकबर दानापूरी
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सूफ़ी कहावत
चराग़-ए- के ऊ ख़ानः रौशन कुनद बरूख़त उफ़्ताद कार-ए-दुश्मन कुनद
वो चिराग जो घरों को रोशनी देता है, अगर वह किसी के कपड़ों पर गिरे, तो दुश्मन की तरह काम करेगा।
वाचिक परंपरा
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-रौ ब-कार-ए-ख़ुद ऐ वाइ'ज़ ईं चे फ़रियाद अस्तमरा फ़ितादः दिल अज़ कफ़ तुरा चे उफ़्ताद अस्त
हाफ़िज़
ना'त-ओ-मनक़बत
अमजद हैदराबादी
बैत
मिल गई हैं चमन हुस्न-ए-सुख़न की कलियाँ
मिल गई हैं चमन हुस्न-ए-सुख़न की कलियाँरौज़ा-ए-’इश्क़ पे दो फूल चढ़ाने के लिए
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ग़ज़ल
जो वो बहार-ए-अज़ार-ए-ख़ूबी चमन में आता ख़िराम करतासनोबर-ओ-सर्व हर एक आ कर ज़रूर उस को सलाम करता
मीर मोहम्मद बेदार
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
आमद बहार ऐ यार-ए-मन ब-शगुफ़्त गुलहा दर चमनशुद दर नवा हर बुलबुले बर शाख़-ए-सर्व-ओ-नारवन