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ग़ज़ल
अज़ल के दिन से बज रहा है साज़-ए-नग़्मा-हा-ए-इ'श्क़तू गोश-ए-दिल से सुन ज़रा तू भी तो मुद्द'आ-ए-इ'श्क़
यादगार शाह वारसी
शबद
वो देश दिवाना जी पहुँचै कोई सन्त जना
बरखै अमिरत बरखा जी पाया आनंद घनाहोवै शब्द अखंडित जी बज रह्या रैन बिना
ईष्वरदास
ना'त-ओ-मनक़बत
शान से लहराया आमद का फरेरा 'अर्श परऔर ख़ुशी के बज रहे थे शादयाने फ़र्श पर
महबूब गौहर इस्लामपुरी
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ना'त-ओ-मनक़बत
जिसे देखो वो है शैदा मु'ईनुद्दीन चिश्ती काजहाँ में बज गया डंका मु'ईनुद्दीन चिश्ती का
अज्ञात
दोहा
दर्शन जल की प्यास है कुछ भी नहीं है चाव
दर्शन जल की प्यास है कुछ भी नहीं है चावतुम जग-दाता बज रहे तो काम हमारे आओ
मुज़्तर ख़ैराबादी
कलाम
अब भला क्या फ़ाएदा छुपने से ऐ जान-ए-जहाँबज रहा है तेरी वहदत का ज़माना भर में ढोल
अब्दुल हादी काविश
सूफ़ी लेख
बाबा फ़रीद शकर गंज
कई आदमियों के ज़ख़्म-ख़ुर्दा सर और ज़रर-रसीदा आँखें उस रात के गुज़र जाने के बा’द कई
निज़ाम उल मशायख़
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- तीसरी दास्तान
पहला पहर बीत रहा था। गर्मी बढ़ रही थी। इस गर्मी से बेख़बर, बूढ़ा नियाज़ बहुत
लियोनिद सोलोवयेव
सूफ़ी लेख
क़व्वाली और अमीर ख़ुसरो – अहमद हुसैन ख़ान
ख़ुश-इल्हानी से हज़रत दाऊद ने पानी, परिंद, और पहाड़ों पर हुकूमत की। अर्वाह से अल्लाह तआ’ला
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
बिहार के प्रसिद्ध सूफ़ी : मख़दूम मुनएम पाक
पटना हर ज़माने में सूफ़ियों और संतों का बड़ा केंद्र रहा है। यहाँ बड़े-बड़े सूफ़ियों की
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
कबीर द्वारा प्रयुक्त कुछ गूढ़ तथा अप्रचलित शब्द पारसनाथ तिवारी
(12-13) धौल तथा गड़रीपद 114.3, धौल मंदलिया बैल खाली कउवा ताल बजावै। तथा पंक्ति 7, कहे
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
मदन साहब ने माया की उपमा एक ऐसी नाउन से दी है जो वेश परिवर्तन कर
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी प्रतीक
दुरफ़्श-ए-कावयानी
ज़ह्हाक के शासनकाल में इस्फ़हान में एक लुहार रहता था जिसका नाम कावा था. उसके चार
अज्ञात
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
भला जमुना ऐसी भरपूर चले और दिल्ली वाले चुपके बैठे रहें, ढंडोरा पिट गया कि कल