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सूफ़ी शब्दावली
ना'त-ओ-मनक़बत
बिला-शक यसरि-ओ-बत्हा का नक़्शा है तिरा कूचाउसे का'बा उसे क़िब्ला उसे क़िब्ला-नुमा जाने
ज़ैनुल आबिदीन चिश्ती
ना'त-ओ-मनक़बत
बिला-शक 'आम इंसानों से है ऊँचा मक़ाम उन काज़माने के लिए दरस मुकम्मल है पयाम उन का
शकील बदायूँनी
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कलाम
मैं देखा शान अहमद की बिला-शक मेरे मुर्शिद मेंमेरा ईमान-ए-कामिल बन गया मुर्शिद की सूरत में
गुलाम रसूल नाइब
ना'त-ओ-मनक़बत
बिला-शक बे-नसीब उस सा नहीं कोई ज़माने में'बशीर' जिस को नहीं हासिल मोहब्बत शाह वारिस से
बशीर वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुदा के नूर से रौशन हुआ है दो-जहाँ बे-शककि उस के मो'तरिफ़ हैं ये ज़मीन-ओ-आसमाँ बे-शक
मुस्तफ़ा ग़ज़ाली
ना'त-ओ-मनक़बत
शहबाज़ असदक़
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तान में क़ौमी यक-जेहती की रिवायात-आ’ली- बिशम्भर नाथ पाण्डेय
बा’ज़ लोगों की ये भी तज्वीज़ है कि अगर उर्दू की क़ित़ाएं उर्दू रस्म-उल-ख़त के अ’लावा
मुनादी
मल्फ़ूज़
इस के बा’द आपने फ़रमाया कि जब लुत्फ़-ए-इलाही की नसीम चलती है तो लाखों शराबियों को