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सूफ़ी कहावत
घड़ी में औलिया, घड़ी में भूत
घड़ी में औलिया, घड़ी में भूतवह व्यक्ति जिस की मानसिक स्थिति घड़ी-घड़ी बदलती रहे,
वाचिक परंपरा
साखी
प्रसिध्द साधु का अंग - तन मन धक्का देत है पुनि धक्का पंच भूत
तन मन धक्का देत है पुनि धक्का पंच भूत'रज्जब' इन में ठाहरै सो आतम अबधूत
रज्जब
दकनी सूफ़ी काव्य
ऐ पंच-भूत क्या है चुप इतना साँसा
ऐ पंच-भूत क्या है चुप इतना साँसाघड़ी में जो तोला घड़ी में जो मासा
शाह मियाँ तुराब दकनी
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राग आधारित पद
भूपाली, चौताल- आदि नाद प्रणव रूप सम्पूर्न दीजियै तुम प्रसाद
आदि भूत अविनासी अनंत अगम अपार,अति आनंद अपूर्व भाँति निरंजन।।
सुरतिसेन
कवित्त
भक्तोद्गार- कोई जन सेवै शाह राजा राव ठाकुर को
कोई जन सेवै प्रेत भूत भौसागर को,कोई जन सेव जग कहूँ बार बार है।
ताज जी
सूफ़ी प्रतीक
मुग़ीलाँ–बबूल या कीकर
मान्यता है कि मुग़ीलाँ अथवा बबूल के पेड़ों पर जिन्न,भूत प्रेत आदि रहा करते हैं.
अज्ञात
पद
बीच भँवर मे नैया मेरी, आ जा पार लगा दे,
काम, क्रोध, मद, लोभ ने घेरा, भ्रम का भूत भगा दे,आ जा पार लगा दे !
समंदरदास
पद
विडंबना -संतो भाई भूल्यो कि जग बौरानो, यह कैसे करि कहिये।
पढ़े पुराण कोरान वेद मत, जीव दया नहिं जानी।जीवनि भिन्न भाव करि मारत, पूजत भूत भवानी।।
बाबा किनाराम
कविता
आज और कल- दया सिन्धु की दया प्राप्त कर हुए अगर तु धन शाली।
बुद्धि दैव ने दी है हमको धन्यबाद दे उसको लक्ष।हित अनहित अपना पहिचाने भावी भूत और प्रत्यक्ष।।
सय्यद अमीर अली मीर
सूफ़ी लेख
सन्तों की प्रेम-साधना- डा. त्रिलोकी नारायण दीक्षित, एम. ए., एल-एल. बी., पीएच. डी.
न संक भूत प्रेत की, न देव जच्छते डरै।। सुनै न कान और की, द्रसै न और इच्छना।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
जायसी का जीवन-वृत्त- श्री चंद्रबली पांडेय एम. ए., काशी
दरब गरब सब देइ विथारी। गनि साथी सब लेई सँभारी।। पाँच भूत मॉड़ी गनि मलई। ओहि सौं मोर न एकौ चलई।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
समर्थ गुरु रामदास- लक्ष्मीधर वाजपेयी
“अरी माता, जो भूत बैकुंठ में था। फिर वहाँ से उतरकर अयोध्या के महलों में संचार
माधुरी पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
रिसाला बारह बहार
ऐ पंच-भूत क्या है चुप इतना साँसाघड़ी में जो तोला घड़ी में जो मासा