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सूफ़ी कहावत
मन आं मुरम की दर पायम बा-मालंद ना ज़ंबूरम कि अज़ नेशम ब-नालंद।
नेक इंसान को मज़बूत होने की बजाय कमजोरी पसंद होती है ताकि दूसरों को पीड़ा न पहुँचे।
वाचिक परंपरा
नज़्म
लहू की धार
क़िलअ'-ए-इस्लाम का मज़बूत दरवाज़ा है तूसूख जाएँ वक़्त की शाख़ें तर-ओ-ताज़ा है तू
मुज़फ़्फ़र वारसी
बैत
हम से फिर जाए ज़माना भी तो क्या होता है
हम से फिर जाए ज़माना भी तो क्या होता हैदिल है मज़बूत फ़क़ीरों का ख़ुदा होता है
शाह अकबर दानापूरी
शबद
प्रेम का अंग - अब तो अफ़्सोस मिटा दिल का दिलदार दीद में आया है
उपदेश उग्र गहि सत्त नाम सोइ अष्ट जाम धुनि लाया हैमुर्शिद की मेहर हुई यों कर मज़बूत जोश उपजाया है
दूलनदास जी
कृष्ण भक्ति सूफ़ी कलाम
यूँ मन में ठहरा फिर चलिये फिर आप ही मन मज़बूत हुआभगवान दया पर आस लगा वाँ जमुना-जी पर ध्यान धरा
नज़ीर अकबराबादी
सूफ़ी लेख
सूफ़ी ‘तुराब’ के कान्ह कुँवर (अमृतरस की समीक्षा)
हज़रत तुराब काकोरवी जब श्रीकृष्ण को अपने पीर या महबूब की शक्ल में पेश कर पाते
बलराम शुक्ल
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा साहब पर क्या कहती हैं पुरानी किताबें?
ये रिसाले कम पन्नों पर प्रकाशित होते थे। बा’ज़ तो ख़्वाजा साहब की शान में चंद
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
बेदम शाह वारसी और उनका कलाम
प्रसिद्ध सूफ़ी विद्वान् ख्व़ाजा हसन निज़ामी फरमाते हैं कि बेदम का तख़ल्लुस ही पूरा ग्रन्थ है