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दोहा
बे-हद की हद मीम सों भई ‘पेम’ मद होय
बे-हद की हद मीम सों भई 'पेम' मद होय
बिला मीम अहमद कहै औ काकी हद होय
बरकतुल्लाह पेमी
ना'त-ओ-मनक़बत
हटा जब मीम का पर्द: तो क्या मालूम होता है
अहद अहमद में ख़ुद जल्व:-नुमा मालूम होता है
संजर ग़ाज़ीपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
जो रू-ए-अहमद के मीम का ये उठा के मैं ने हिजाब देखा
नज़र न आया सिवा अहद के तमाशा कुछ बे-नक़ाब देखा
ग़ौसी शाह
ना'त-ओ-मनक़बत
शब्बीर साजिद मेहरवी
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दकनी सूफ़ी काव्य
हकीकत रामकली
वाहिद अपने आप था आपे आप निझाया।
परकट जलवे कारने, अलिफ मीम हो आया।।
ख़्वाजा बंदानवाज गेसूदराज़
दोहरा
अरब शरीफ़ दा मुलक अजायब जथां अरबी ढोल प्या वस्सदा ।
रहन्दा दिलबर मीम दे ओले लुक छुप भेत न डस्सदा ।
यार फ़रीदा अरज़ मनज़ूर करे चा ईं आजज़ बेकसदा ।
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
तेरे नाख़ुन ने जो खोली मीम-ए-अहमद की गिरह
खुल गए उ’क़्दे जहाँ में हर ख़ुदा-आगाह के
सूफ़ीनामा आर्काइव
दोहरा
हक्को अलफ काफ़ी मुलां बे दी गरज़ न काई ।
न डे डर के अलफ़ कूं फड़के रमज़ अलफ़ समझाई ।
ग़ुलाम फ़रीद दिल अलफ़ लुटी वाह मीम कीती रुशनाई ।
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
दोहरा
अलसत कनूं दिल मसत होइम जां सुणिअम अलसती क़ौले ।
अहदों अहमद बण कर आया हिक्क मीम खड़ा विच्च ओले ।
ग़ुलाम फ़रीद दी दिल चा लुट्टड़ी ओ सोहने अरबी ढोले ।
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
क़िस्सा काव्य
हीर वारिस शाह
362. तथा
मरद साद हन चेहरे नेकियां दे, सूरत रन्न दी मीम मौकूफ़ है नी ।
वारिस शाह
राग आधारित पद
नैनों वाला मेरा मतवाला
ख़े 'ख़ादिम' है स्वाद 'सफ़ी' है
मीम मोहम्मद है उजियाला