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ना'त-ओ-मनक़बत
नमाज़-ए-सुब्ह आती है न ज़िक्र-ए-शाम आता हैरह-ए-’इरफ़ान में 'इश्क़-ए-'अली ही काम आता है
अब्दुल हादी काविश
क़िता'
नहीं वो ज़िक्र कि हज़रत-जी सुब्ह-ओ-शाम कियान मय-परस्तों की सोहबत जो भर के जाम पिया
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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क़िता'
नहीं वो ज़िक्र कि हज़रत जी सुब्ह-ओ-शाम कियान मय-परस्तों की सोहबत जौ भर के जाम पिया
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ना'त-ओ-मनक़बत
करता है वस्फ़-ए-शाह जो शाम-ओ-सहर दिमाग़नज़रों में अहल-ए-दिल की वो है मो'तबर दिमाग़
अमीर हमज़ा निज़ामी
मल्फ़ूज़
उसी माह और उसी सन की 27 तारीख़ को फिर सआ’दत-ए-पा-बोसी नसीब हुई।शैख़ जमालुद्दीन मुतवक्किल, शम्स
बाबा फ़रीद
ना'त-ओ-मनक़बत
नसीम-ए-सुब्ह ज़ुहद-ओ-इत्तिक़ा मख़दूम-ए-समनानीक़सीम-ए-कंज़ इ'श्क़-ए-मुस्तफा मख़दूम-ए-समनानी
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
मदीने की ज़मीं पर सुब्ह का 'आलम पसंद आयासुकूत-ए-सब्ज़ा-ओ-गुल गिर्या-ए-शबनम पसंद आया
अबुल वफ़ा फ़सिही
ना'त-ओ-मनक़बत
सुब्ह-ए-’इरफ़ाँ का उजाला बज़्म-ए-वह्दत का चराग़मुसहफ़-ए-रुख़ मा'रिफ़त-ए-तौहीद का शादाब बाग़