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ना'त-ओ-मनक़बत
तड़प उठता है दिल लफ़्ज़ों में दोहराई नहीं जातीज़बाँ पर कर्बला की दास्ताँ लाई नहीं जाती
पीर नसीरुद्दीन नसीर
सूफ़ी लेख
हज़रत सैयद ज़ैनुद्दीन अ’ली चिश्ती
तुर्की लिख हिंदू की गाईफिर मैं ने इन लफ़्ज़ों की हक़ीक़त पा ली
सय्यद रिज़्वानुल्लाह वाहिदी
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ना'त-ओ-मनक़बत
तिरी सना में हैं लफ़्ज़ों की झोलियाँ ख़ालीक़ुबूल हो मिरा 'इज्ज़-ए-बयाँ ग़रीब-नवाज़
पीर नसीरुद्दीन नसीर
नज़्म
क़ौमी यक-जेहती
एक दिल एक तड़प एक नज़र एक ख़यालआज हर बज़्म में इन लफ़्ज़ों को समझा जाये
अज़ीज़ वारसी देहलवी
सेहरा
अहल-ए-गुजरात भी ख़ुश होंगे है उम्मीद मियाँदेंगे अब दाद तेरे लफ़्ज़ों की सुन कर सेहरा
नियाज़ वज़िरबादी
ग़ज़ल
दो लफ़्ज़ों ही में कह दिया सब माजरा-ए-दिलख़ामोश हो गया हो कोई कह के हा-ए-दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
वही बातें तो ‘मज्ज़ूब’ अपनी बड़ में कह सुनाता हैज़रा सँभले हुए लफ़्ज़ों में जो तूने कहीं साक़ी
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
न हो जाए कहीं तक़दीम या ताख़ीर लफ़्ज़ों मेंसुना दे ऐ मिरे क़ासिद ज़रा मेरा बयाँ मुझ को
शाकिर कानपुरी
कलाम
दो लफ़्ज़ों ही में कह दिया सब माजरा-ए-दिलख़ामोश हो गया है कोई कह के हा-ए-दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
मुख़म्मस
नाज़ाँ शोलापुरी
ग़ज़ल
अज़मत हुसैन ख़ान
ना'त-ओ-मनक़बत
आक़ा की ’अताओं का 'आलम किस तरह बयाँ हो लफ़्ज़ों मेंआक़ा की ’अताएँ देख के हम दुनिया का ख़ज़ाना भूल गए