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दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी दर फ़वायद बिस्मिल्ला
बदन पर है बस धूप का जामा साफ़हुआ चाँदनी का निहाली लिहाफ़
गुलामनबी हैदराबादी
दकनी सूफ़ी काव्य
खुशनामा
न मुझ लोभे पाट-पितम्बर यह ज़र ज़मी श्रंगारफाटी फूट कंबली नीकी फटा लिहाफ़ हमार
शाह मीराजी शम्सुल शाख़
दकनी सूफ़ी काव्य
ऐ पंच-भूत क्या है चुप इतना साँसा
ना चाहें गर्म लिहाफ़ ना बज्म-ए-निहालीन दिल में दर्द कुछ ग़म कहत साली
शाह मियाँ तुराब दकनी
दकनी सूफ़ी काव्य
रिसाला बारह बहार
ना चाहें गर्म लिहाफ़ ना बज्म-ए-निहालीन दिल में दर्द कुछ ग़म कहत साली
शाह मियाँ तुराब दकनी
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ग़ज़ल
शाह अकबर दानापूरी
सूफ़ी कहानी
लड़कों का उस्ताद को वह्म से बीमार कर डालना- दफ़्तर-ए-सेउम
अल-ग़र्ज़ बिछौना लाकर उसने बिछा दिया। अगरचे दिल में बहुत जल रही थी कि अगर अब
रूमी
सूफ़ी कहानी
एक आ’राबी का ख़लीफ़ा-ए-बग़दाद के पास खारी पानी बतौर तोहफ़ा ले जाना - दफ़्तर-ए-अव्वल
अगले ज़माने में एक ख़लीफ़ा था जिसने हातिम को भी अपनी सख़ावत के आगे भिकारी बना