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ना'त-ओ-मनक़बत
सना-ख़्वाँ किस तरह हो कोई उस महबूब-ए-यकता काज़बाँ मैं ये कहाँ क़ुदरत क़लम को ये कहाँ यारा
सूफ़ी तबस्सुम
फ़ारसी कलाम
कर्द ख़ुदा सना-ए-ऊ सल्ले-अ'ला मोहम्मदिनजान-ए-जहाँ फ़िदा-ए-ऊ सल्ले-अ'ला मोहम्मदिन
हाजी वारिस अली शाह
ना'त-ओ-मनक़बत
औघट शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
मिरी मजाल जो लिक्खूँ तिरी सना ज़ैनबपर लिखता हूँ कि मिले दर्द की दवा ज़ैनब
सक़लैन अहमद जाफ़री
ना'त-ओ-मनक़बत
अज़ल ही से मोहम्मद की सना-ख़्वाँ है ज़बाँ मेरीबयाज़-ए-सुब्ह-ए-हस्ती पर लिखी है दास्ताँ मेरी
आरज़ू सहारनपुरी
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी