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ग़ज़ल
सुकून-ए-क़ल्ब किसी को नहीं मयस्सर आजशिकस्त-ए-ख़्वाब है हर शख़्स का मुक़द्दर आज
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
शे'र
सुकून-ए-क़ल्ब की उम्मीद अब क्या हो कि रहती हैतमन्ना की दो-चार इक हर घड़ी बर्क़-ए-बला मुझ से
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
बे-सुकूनी में सुकून-ए-क़ल्ब है हासिल मुझेइज़्तिराब-ए-दिल नहीं है इज़्तिराब-ए-दिल मुझे
पंडित शाएक़ वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुश-मिज़ाज-ओ-नर्म तेवर है मदीने की ज़मींऔर सुकून-ए-क़ल्ब-ए-मुज़्तर है मदीने की ज़मीं
ताहा अज़ीज़
ना'त-ओ-मनक़बत
सुकून-ए-क़ल्ब-ए-ज़्तर है ख़याल उस काली कमली कासर-ए-महशर पनाह अपनी इसी इक साएबाँ तक है
तल्हा रिज़वी बरक़
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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
सहारा है फ़क़त मुझ को सहारा शाह-ए-अकबर कासुकून-ए-क़ल्ब का ज़रिया' है रौज़ा शाह-ए-अकबर का
अरशद बलरामपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
सुकून-ए-क़ल्ब-ए-ख़ासाँ हैं क़रार-ए-जान-ए-पाकाँ हैंन जाने किस का जल्वा हैं मु’ईनुद्दीन-ओ-मुहिउद्दीं
कामिल शत्तारी
ग़ज़ल
सुकून-ए-क़ल्ब की उम्मीद अब क्या हो कि रहती हैतमन्ना की दो-चार इक हर घड़ी बर्क़-ए-बला मुझ से
हसरत मोहानी
ना'त-ओ-मनक़बत
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
ज़ख़्मों से कलेजे को भर दे बर्बाद सुकून-ए-दिल कर देओ नाज़ भरी चितवन वाले आ और मुझे बिस्मिल कर दे
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
सुकून-ए-मुस्तक़िल दिल बे-तमन्ना शैख़ की सोहबतये जन्नत है तो इस जन्नत से दोज़ख़ क्या बुरा होगा