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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
बहारें तेरी मुर्ग़ान-ए-चमन तेरे चमन तेरागुलों में बू है तेरी रंग तेरा बाँकपन तेरा
शाह अकबर दानापूरी
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ना'त-ओ-मनक़बत
अमजद हैदराबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दोश मन पैग़ाम कर्दम सू-ए-तू इस्तार: रागुफ़्तमश ख़िदमत रसाँ अज़ मन तू आँ मह-पारः रा
रूमी
बैत
मिल गई हैं चमन हुस्न-ए-सुख़न की कलियाँ
मिल गई हैं चमन हुस्न-ए-सुख़न की कलियाँरौज़ा-ए-’इश्क़ पे दो फूल चढ़ाने के लिए
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
फ़ारसी कलाम
ऐ तालिब-ए-फ़िरदौस ब-रौ सू-ए-मोहम्मदचूँ ख़ुल्द-ए-बरीं आमदः दर कू-ए-मोहम्मद