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ना'त-ओ-मनक़बत
बे-ज़बानों ने भी की सरकार की हम्द-ओ-सनाजिस घड़ी भी हुक्म मिदहत आप का उन से मिला
उवेस रज़ा अम्बर
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ना'त-ओ-मनक़बत
नहीं है ये अगर तेरा करम तो और फिर क्या हैहै 'अकबर' की ज़बाँ पर जो तिरी हम्द-ओ-सना या रब
जलाल अकबर
ना'त-ओ-मनक़बत
बयाँ करते हैं सब जिन्न-ओ-बशर हम्द-ओ-सना रब कीतमाम अश्या-ए-’आलम हैं उसी की तर्जुमाँ बे-शक
मुस्तफ़ा ग़ज़ाली
ना'त-ओ-मनक़बत
जौहर नूरी
ना'त-ओ-मनक़बत
है हम्द-ओ-सना सब तेरे लिए फिर किस की कोई ता'रीफ़ करेइस बात का अल-हम्द गवाह सलवाते-मोहम्मद सल्लल्लाहु
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
तेरी हम्द कैसे हो या ख़ुदा तेरी शान जल्ला-जलालुहुनहीं मिस्ल तेरा तिरे सिवा तेरी शान जल्ला-जलालुहु
ख़्वाजा नासिरुद्दिन चिश्ती
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह ग़फ़ूरुर्रहमान हम्द काकवी
कमालाबाद उ’र्फ़ काको की क़दामत के तो सब क़ाएल हैं।आज से 700 बरस क़ब्ल मुस्लिम आबादी
रय्यान अबुलउलाई
ना'त-ओ-मनक़बत
मिरी मजाल जो लिक्खूँ तिरी सना ज़ैनबपर लिखता हूँ कि मिले दर्द की दवा ज़ैनब
सक़लैन अहमद जाफ़री
कलाम
तसद्दुक़ अ’ली असद
ना'त-ओ-मनक़बत
'इश्क़ के दफ़्तर में पहले हम्द हो अल्लाह काहर सतर में तब खुलेगा मा'नी वजहुल्लाह का