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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहानी
एक शख़्स का अपने हाल-ए-ज़ाहिर के ख़िलाफ़ हवा बांधना
एक शख़्स इ’राक़ से बिलकुल बे सर-ओ-सामान हो कर आया। दोस्तों ने उस से दूरी-ओ-जुदाई के
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
मंज़र फ़ज़ा-ए-दहर में सारा 'अली का हैजिस सम्त देखता हूँ नज़ारा 'अली का है
पीर नसीरुद्दीन नसीर
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ना'त-ओ-मनक़बत
बलाएँ ग़म की टलें और हवा-ए-कैफ़ चलीलिया ज़बान से जिस दम जो मैं ने नाम-ए-'अली
मोहम्मद हुज़ैफ़ा
ना'त-ओ-मनक़बत
कुछ ऐसे दहर में छाया है मय-ख़ाना मोहम्मद काकि हर कोई हुआ जाता है मस्ताना मोहम्मद का
मोहम्मद हुज़ैफ़ा
सूफ़ी कहावत
कौन सा दरख़्त है, जिसे हवा नहीं लगी
कौन सा दरख़्त है, जिसे हवा नहीं लगीथोड़े बहुत कष्ट सभी को भोगने पड़ते हैं