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ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ुल्फ़-ए-लैला-ए-दो-’आलम का जिसे सौदा नहींहै वो दीवाना ख़ुदा को उस ने पहचाना नहीं
अख़तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
औघट शाह वारसी
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ना'त-ओ-मनक़बत
वो सब रौशन-ज़मीरी में हुए यक्ता-ए-दो-आलमबुलंदी अर्श-ए-आ'ला की वो लै कर बर ज़मीं आए
हैरत शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़लील सफ़िपुरी
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
मंज़ूर आरफ़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
ग़रीबों का सहारा या मोहम्मद मुस्तफ़ा तुम होख़ुदा के दिल-रुबा हो बे-कसों का आसरा तुम हो