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ना'त-ओ-मनक़बत
आज ज़ोरों पे है ये दर्द-ए-जिगर क्या बाइ'सली न सरकार-ए-दो-’आलम ने ख़बर क्या बाइ'स
ग़ौसी शाह
सूफ़ी लेख
क़व्वाली ग्यारहवीं शरीफ़ और हज़रत ग़ौस पाक के चिल्लों पर
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के चिल्लों पर क़व्वाली के रिवाज और उसकी मक़्बूलियत के बाद हिन्दोस्तान में
अकमल हैदराबादी
रूबाई
दे ज़ाहिर-ओ-बातिन में मुझे 'इज़्ज़-ओ-शरफ़अतराफ़ से छुट जाऊँ रहूँ तेरी तरफ़
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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कलाम
नाला-ए-दिल लब से जिस दिन आश्ना हो जाएगादेख लेना तुम कि 'आलम क्या से क्या हो जाएगा
अब्दुल क़ादिर शरफ़
ग़ज़ल
'इश्क़ में आ कर तिरी अज़ बस-कि ग़म खाते हैं हमदिल लगा कर तुझ से प्यारे अब तो पछताते हैं हम
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
ग़ज़ल
फिर रहे हैं यूँही इक मुद्दत से बाज़ारों में हमकह नहीं सकते कि हैं किस के ख़रीदारों में हम
अब्दुल क़ादिर शरफ़
ग़ज़ल
बड़ी मुश्किल से हम उस बे-वफ़ा का नाम लेते हैंकि पहले दोनों हाथों से कलेजा थाम लेते हैं
अब्दुल क़ादिर शरफ़
फ़ारसी कलाम
ऐ ग़नी ज़ात-ए-तू अज़ इक़रार-ओ-अज़ इंकार-ए-माबे-नियाज़ अज़ मा-ओ-अज़ पैदाई-ओ-इज़्हार-ए-मा
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
फ़ारसी कलाम
निज़ामुद्दीन औलिया
फ़ारसी कलाम
ऐ बे-ख़बर चे पुर्सी अज़ मज़्हब-ए-क़लंदरबर-हक़ बुवद अनल-हक़ दर मश्रब-ए-क़लंदर