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ग़ज़ल
बस-कि हूँ दिल-तंग ख़ुश आता है सहरा-ए-क़फ़सबुलबुल-ए-बे-बाल-ओ-पर रखती है सौदा-ए-क़फ़स
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ग़ज़ल
दिल में ख़याल था कि उसे कुछ कहेंगे 'इ'श्क़'मुँह देख रह गए उसे नाचार देख कर
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
कहियो ऐ क़ासिद पयाम उस को कि तेरे हिज्र सेजाँ-ब-लब पहुँचा नहीं आता है तू याँ अब तलक
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
क़िता'
नहीं वो ज़िक्र कि हज़रत-जी सुब्ह-ओ-शाम कियान मय-परस्तों की सोहबत जो भर के जाम पिया
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ग़ज़ल
क्या पूछते हो मुझ से कि क्यूँ तू ने रो दियादिल ने किया था जम्अ' सो आँखों ने खो दिया