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कलाम
अंदर हू ते बाहर हौ हू बाहर कत्थे जलेंदा हू
हू दा दाग़ मोहब्बत वाला हर-दम नाल सड़ेंदा हू
सुल्तान बाहू
दोहरा
अरी हंसरी बूझ बाहर समुँद सँभाल
अरी हंसरी बूझ बाहर समुँद सँभाल
इस तालरि बेरी घने मत कोइ मेलै जाल
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
शे'र
मिस्ल-ए-गुल बाहर गया गुलशन से जब वो गुल-एज़ार
अश्क-ए-ख़ूनी से मेरा तन तर-ब-तर होने लगा
किशन सिंह आरिफ़
शे'र
मिस्ल-ए-गुल बाहर गया गुलशन से जब वो गुल-ए'ज़ार
अश्क-ए-ख़ूनी से मेरा तन तर-ब-तर होने लगा
किशन सिंह आरिफ़
कलाम
तिरे कहने से मैं अज़-बस-कि बाहर हो नहीं सकता
इरादा सब्र का करता तो हूँ पर हो नहीं सकता
ख़्वाजा मीर दर्द
दोहरा
जैसो लहर समुद्र की बाहर निकरी माय
जैसो लहर समुद्र की बाहर निकरी माय
सदा आन्ह समुंद वो समुँदहि पैठी जाय
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
ग़ज़ल
सहर होते ही उठ कर वो जो घर से बाहर आ-निकला
उधर ही इत्तिफ़ाक़न फिरते-फिरते मैं भी जा निकला
ख़्वाजा मीर दर्द
साखी
बिरह का अंग - तन भीतर मन मानिया बाहर कहूँ न लाग
तन भीतर मन मानिया बाहर कहूँ न लाग
ज्वाला तें फिर जल भया बुझी जलन्तो आग
कबीर
गूजरी सूफ़ी काव्य
अंदर नहीं, बाहर नहीं, बल्कि पिया हर चीज़ है
अंदर नहीं बाहर नहीं बल्कि पिया हर चीज़ है
या बास जियूँ संदल मनें या जल्वा-ए-रुख़्सार ख़ुश