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ना'त-ओ-मनक़बत
तुम्हारी ज़ात है वो पाक ज़ात या-वारिसकि जिस में सब हैं ख़ुदा की सिफ़ात या-वारिस
एजाज़ वारसी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली ग्यारहवीं शरीफ़ और हज़रत ग़ौस पाक के चिल्लों पर
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के चिल्लों पर क़व्वाली के रिवाज और उसकी मक़्बूलियत के बाद हिन्दोस्तान में
अकमल हैदराबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
शगुफ़्तः शुद गुल-ए-हमरा-ओ-गश्त बुलबुल मस्तसला-ए-सर-ख़ुश ऐ सुफि़यान-ए-बाद:-परस्त
हाफ़िज़
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सूफ़ी कहावत
आन रा कि हिसाब पाक अस्त अज़ मुहास्बा चे: बाक अस्त
जिसके हिसाब-किताब साफ़ हैं, उसे क्यों डरना
वाचिक परंपरा
ग़ज़ल
फूले है गरचे बाग़ में बुलबुल हज़ार शाख़उस सर्व-क़द को देखे तो हो शर्मसार शाख़
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
सूफ़ी कहावत
दिल कि पाक अस्त, ज़ुबां बेबाक अस्त।
जब किसी की आत्मा शुद्ध होती है, तो उसकी ज़ुबां भयरहित होती है।
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
मोरे प्यारे मोहम्मद प्यारे नबी मुझे पाक जमाल दिखाओ जीमोहे बिरह अगन ने फूक दिया अब इतना न तरसाओ जी