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राग आधारित पद
राग मलार- ऐसे जन धनि जननी जिहि जाये
ऐसे जन धनि जननी जिहि जायेदूसर कुल में भक्ति नहीं थी
सहजो बाई
सूफ़ी कहावत
गरत अज़ दस्त बर आयद, दहनी शीरीं कुन,,मर्दी आं नीस्त कि मुश्ती बज़नी बर दहनी
अगर आपसे संभव हो, तो किसी के मुँह को मीठा कीजिए; किसी के मुँह पर मारना मर्दानगी की निशानी नहीं है
वाचिक परंपरा
साखी
सेवक और दास का अंग - द्वार धनी के पड़ि रहै धका धनी का खाय
द्वार धनी के पड़ि रहै धका धनी का खायकबहुँक धनी निवाजई जो दर छाड़ि न जाय
कबीर
ना'त-ओ-मनक़बत
क़िस्मत का सिकंदर हूँ मुक़द्दर का धनी हूँमैं पंजतनी पंजतनी पंजतनी हूँ
शब्बीर साजिद मेहरवी
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दकनी सूफ़ी काव्य
रिसाला बारह बहार
ये संसार सूँ हात धोना है आख़िरसगेأसोदरे मिल को रोना है आख़र
शाह मियाँ तुराब दकनी
होरी
होली- जग ये दोउ खेलत होरी ।
जग ये दोउ खेलत होरी ।माया ब्रह्म बिलास करत हैं, एक से एक बरजोरी ।।
महात्मा धनी धर्मदास जी
मंगल
हमरा बियाह करो मोरे बाबा, तुम सों नाहिं निबाह हो ।
हमरा बियाह करो मोरे बाबा, तुम सों नाहिं निबाह हो ।जिन के नाहिं रूप औ रेखा, उन से हमरो बियाह हो ।।
महात्मा धनी धर्मदास जी
शबद
बिरह और प्रेम का अंग - साहेब चितवो हमरी ओर
बिरह और प्रेम का अंग - साहेब चितवो हमरी ओरहम चितवैं तुम चितवो नाहीं तुम्हरो ह्रदय कठोर
महात्मा धनी धर्मदास जी
शबद
उपदेश - धुनि बजत गगन महँ बीना
धुनि बजत गगन महँ बीना जहँ आपु रास रस भीनाधुनि बजत गगन महँ बीना जहँ आपु रास रस भीना
भीखा साहेब
अरिल्ल
अरिल छंद - सुन्न सहर आजूब सहज धुनि लागई
सुन्न सहर आजूब सहज धुनि लागईइँगल पिंगल को खेल अमी तब पागई
गुलाल साहब
शबद
उपदेश का अंग - अगम पुर नौंबति धुनि जंह बाजई
अगम पुर नौंबति धुनि जंह बाजईघन गरजै मोती तहं बरसै उलट गगन चढ़ि गाजई
गुलाल साहब
शबद
बिरह और प्रेम का अंग - मोरा पिया बसै कौने देस हो
मोरा पिया बसै कौने देस हो मोरा पिया बसै कौने देस होअपने पिया के ढूँढ़न हम निकसीं कोइ न कहत सनेस हो
महात्मा धनी धर्मदास जी
साखी
सेवक और दास का अंग - दात धनी याचै नहीं सेव करै दिन रात
दात धनी याचै नहीं सेव करै दिन रातकहै 'कबीर' ता सेवकहिं काल करै नहिं घात