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दोहा
भेद का अंग - 'दूलन' ये मत गुप्त है प्रगट न करो बखान
'दूलन' ये मत गुप्त है प्रगट न करो बखानऐसे राखु छिपाय मन जस बिधवा औधान
दूलनदास जी
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
कुछ दिनों पूर्व तक संतों का साहित्य प्रायः नीरस बानियों एवं पदों का एक अनुपयोगी संग्रह
हिंदुस्तानी पत्रिका
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सूफ़ी लेख
रसखान के वृत्त पर पुनर्विचार - कृष्णचन्द्र वर्मा
रसखान के जीवनवृत्त पर सर्वप्रथम प्रकाश डालने का श्रेय श्री किशोरीलाल गोस्वामी को है। वे रसखान
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
देव और बिहारी विषयक विवादः उपलब्धियाँ- किशोरी लाल
रीतियुग की काव्य-रचना ऐहिक जीवन के मादक एवं सरस प्रभावों से पूर्ण तथा अनुप्राणित रही है,
हिंदुस्तानी पत्रिका
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मीराबाई और वल्लभाचार्य
कृष्णदास अधिकारी की वार्ता से पता चलता है कि आचार्य महाप्रभु के कुछ निज सेवक मीराबाई
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कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
सम्पूर्ण सृष्टि-व्यापार का अवलोकन करने पर यह जिज्ञासा होती है कि इसका विकास किन तत्व से
हिंदुस्तानी पत्रिका
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महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय - श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
भारतवर्ष में संत-महात्माओं की संख्या जिस प्रकार अत्यंत अधिक रही है, उसी प्रकार उन के द्वारा
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय- श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
भारतवर्ष में संत-महात्माओं की संख्या जिस प्रकार अत्यंत अधिक रही है, उसी प्रकार उन के द्वारा
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सुकवि उजियारे - पंडित मयाशंकर याक्षिक
रत्नपूर्ण वसुंधरा में विविध रत्न छिपे पड़े हैं। खोज करने से ही उन का पता चलता
हिंदुस्तानी पत्रिका
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उमर ख़ैयाम श्रीयुत इक़बाल वर्मा, सेहर
उमर ख़ैयाम के जीवन के संबंध में हमारी जानकारी बहुत थोड़ी है। वह अपनी जगत्प्रसिद्ध रूबाइयों
हिंदुस्तानी पत्रिका
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मधुमालती नामक दो अन्य रचनाएँ - श्रीयुत अगरचंद्र नाहटा
हिंदुस्तानी के गत अप्रैल के अंक में श्रीयुत ब्रजरत्नदास जी का मंझन-कृत मधुमालती शीर्षक लेख प्रकाशित
हिंदुस्तानी पत्रिका
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सन्तरण कृत गुरु नानक विजय - जयभगवान गोयल
गुरु नानक विजय 24382 छंदों का एक धर्मप्रधान वृहदाकर प्रबन्ध काव्य है। जिसका प्रणयन उदासी सम्प्रदाय
हिंदुस्तानी पत्रिका
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फ़ारसी लिपि में हिंदी पुस्तकें- श्रीयुत भगवतदयाल वर्मा, एम. ए.
दक्षिण भारत के पुस्तकालयों में मुझे कुछ पुस्तकें ऐसी मिली हैं जो फारसी लिपि में लिखी
हिंदुस्तानी पत्रिका
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कबीर द्वारा प्रयुक्त कुछ गूढ़ तथा अप्रचलित शब्द पारसनाथ तिवारी
मध्यकाल के प्रायः सभी प्रमुख हिन्दी-कवियों ने ऐसे अनेक सभ्द अपनी रचनाओं में प्रयुक्त किये हैं