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ग़ज़ल
मैं हूँ सिर्र-ए-हक़ीक़त ला-मकाँ है ख़ास घर मेरामगर है इ'श्क़ में इस वक़्त फेरा दर-बदर मेरा
ग़ौसी शाह
शे'र
पहुँचा है जब से इ’श्क़ का मुझ को सलाम-ए-ख़ासदिल के नगीं पे तब से खुदाया है नाम-ए-ख़ास
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ग़ज़ल
पहुँचा है जब से इश्क़ का मुझ को सलाम-ए-ख़ासदिल के नगीं पे तब से ख़ुदाया है नाम-ए-ख़ास
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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ग़ज़ल
हिजाब-ए-ख़ास के पर्दे उठे हैं कैफ़-ओ-मस्ती मेंन जाने किस की हस्ती देखता हूँ अपनी हस्ती में
मुज़्तर ख़ैराबादी
कलाम
तन मैं यार दा शहर बणाया दिल विच ख़ास मोहल्ला हूआण अलिफ़ दिल वस्सों कीती होई ख़ूब तसल्ला हू
सुल्तान बाहू
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ास वली-ए-महबूब-ए-ख़ुदा हज़रत-ए-पीर निज़ामुद्दीनहादी-ए-मौला राह-नुमा हज़रत-ए-पीर निज़ामुद्दीन
अज्ञात
नज़्म
क़ौमी यक-जेहती
ख़ार-ओ-ख़स ग़ुंचा-ओ-गुल बर्ग-ओ-शजर शाख़-ओ-समरसब गुलिस्ताँ के लिए हुस्न का गंजीना हैं