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कलाम
कोई मज़ा मज़ा नहीं कोई ख़ुशी ख़ुशी नहींतेरे बग़ैर ज़िंदगी मौत है ज़िंदगी नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
मज़ा है ज़िंदगानी का अगर हो पास दिलबर केनिकल कर वहम-ए-हस्ती से गुज़र हो पास दिलबर के
मीराँ शाह जालंधरी
ना'त-ओ-मनक़बत
यही दर्द-ए-ज़िंदगी है इसी दर्द में मज़ा हैतेरा नाम जब लिया मेरा दिल तड़प उठा है
शिवा बरेलवी
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़िंदगी का है मज़ा तो आप के दरबार मेंहै ख़ुदा वालों की जन्नत कूचा-ए-दिलदार में
इश्तियाक़ आलम शहबाज़ी
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ग़ज़ल
शैख़ क्या जाने शराब-ए-अर्ग़वानी का मज़ाआह मुस्तसक़ी से पूछो सर्द पानी का मज़ा
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
ख़ुशी से चोट खाने का मज़ा या कैफ़-ए-जाँ-सोज़ीकोई जाँ-सोज़ परवाना या कोई दिल-जला जाने
बेख़ुद सुहरावरदी
ग़ज़ल
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ग़ज़ल
कहूँ क्या अल्लाह अल्लाह क्या मज़े का दर्द होता हैजिसे महबूब ख़ुद बख़्शे वो मीठा दर्द होता है
नाज़ाँ शोलापुरी
बैत
क्या देखते हो ग़ौर से माज़ी का आईना
क्या देखते हो ग़ौर से माज़ी का आईनाधुँदला गया है वक़्त के गर्द-ओ-ग़ुबार में