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सलाम
अस्सलाम ऐ शाहकार-ए-क़ुद्रत-ए-ख़ल्लाक़-ए-कुलअस्सलाम ऐ अहमद-ए-महबूब-ए-यज़्दाँ अस्सलाम
क़सीम-उल-हक़ गयावी
ग़ज़ल
अंदाज़-ए-नाज़-ए-हुस्न है कुछ और ऐ ‘क़सीम’'इश्क़-ए-नियाज़-मंद का दा'वा कुछ और है
क़सीम-उल-हक़ गयावी
ग़ज़ल
न 'ऐश-ए-ज़िंदगी को दाइमी इस दहर में समझोन हो मायूस हरगिज़ वक़्फ़-ए-आलाम-ए-जहाँ हो कर
क़सीम-उल-हक़ गयावी
ग़ज़ल
ये नुक्ता-ए-लतीफ़ है अहल-ए-जुनूँ का राज़समझेंगे रम्ज़-ए-’इश्क़ को हम आप क्या भला
क़सीम-उल-हक़ गयावी
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ना'त-ओ-मनक़बत
ज़बान-ए-ख़ल्क़ है मद्दाह वस्फ़-ए-रहमत-ए-'आलमसना-ख़्वाँ आप का वो भी है जो महरूम-ए-ईमाँ है
क़सीम-उल-हक़ गयावी
ना'त-ओ-मनक़बत
अस्ल तू मक़्सूद तू मस्जूद तू मा'बूद तूइब्तिदा तू इंतिहा तू जान-ए-हस्त-ओ-बूद तू
क़सीम-उल-हक़ गयावी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अनवार-ए-जमाल-ए-तुस्त दर दीदः-ए-हर-मोमिनदस्तार-ए-जलाल-ए-तुस्त दर सीनः-ए-हर-काफ़िर
शम्स मग़रिबी
गूजरी सूफ़ी काव्य
है सालिक-ए-राह-ए-ख़ुदा संग-ए-रेज़ा सी अव्वल सबक़
है सालिक-ए-राह-ए-ख़ुदा संग-ए-रेज़ा सी अव्वल सबक़पर तूँ शिकस्त नफ़्स का होत शिकस्ता बहर-ए-हक़
पीर सय्यद मोहम्मद अक़दस
शे'र
मुझसे अव़्वल न था कुछ दह्र में जुज़ ज़ात-ए-ख़ुदाग़ैर-ए-हक़ देखा तो फिर कुछ न रहा मेरे बा’द
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
हर नक़्श रा कि दीदी जिन्स-अश ज़े-ला-मकानस्तगर नक़्श रफ़्त ग़म नीस्त अस्लश चु जावेदानस्त
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
हक़ रसा हक़ आश्ना रश्क-ए-जहाँ अमझर में हैवारिस-ए-इ’ल्म शह-ए-कौन-ओ-मकाँ अमझर में है