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दोहा
यों 'रहीम' सुख दुख सहत बडे लोग सह साँति
यों 'रहीम' सुख दुख सहत बड़े लोग सह साँतिउवत चंद जेहि भाँति सो अथवत ताही भाँति
रहीम
सूफ़ी कहावत
सह चीज़ अस्त कि अगर हक़ीक़त बाशद आंरा इस्तिहक़ार नशायद कर्द. बीमारी ओ वाम ओ दुश्मन
तीन चीज़ों को कमज़ोरी समझना नहीं चाहिए, चाहे वो जितनी ही छोटी लगे: बीमारी, कर्ज़ और दुश्मन।
वाचिक परंपरा
शे'र
हाज़िर है बज़्म-ए-यार में सामान-ए-ऐ’श सबअब किस का इंतिज़ार है 'अकबर' कहाँ हो तुम
शाह अकबर दानापूरी
ग़ज़ल
और ज़िक्र-ए-’ऐश से होता है दूना रंज-ओ-ग़मअब कि अगली सोहबतें ख़्वाब-ए-परेशाँ हो गईं
अब्दुल रब तालिब
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
हर नक़्श रा कि दीदी जिन्स-अश ज़े-ला-मकानस्तगर नक़्श रफ़्त ग़म नीस्त अस्लश चु जावेदानस्त
रूमी
नज़्म
हुआ फिर शीअः-ओ-सुन्नी में झगड़ा
हुआ फिर शीअः-ओ-सुन्नी में झगड़ाज़मीं से चर्ख़ तक पहुँचा क़ज़ियः