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सूफ़ी लेख
फ़ारसी गिरह-बंदी की इब्तिदा, फ़ारसी का मंज़ूम कलाम
‘’अल्लाह हू" की तकरार और हज़रत ‘अली की तारीफ़ ही के दौर में क़व्वाली में फ़ारसी
अकमल हैदराबादी
फ़ारसी कलाम
ऐ शाफ़े-ए'-तर दामनाँ-ओ- वै चारा-ए-दर्द-ए-निहाँजान-ए-दिल-ओ-रूह-ए-रवाँ या'नी शह-ए-अ'र्श आस्ताँ
अहमद रज़ा ख़ान
ना'त-ओ-मनक़बत
रहमतों वाले नबी ख़ैर-उल-वरा का तज़्किराकीजिए हर वक़्त महबूब-ए-ख़ुदा का तज़्किरा
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
ग़ज़ल
रहा करता है अक्सर तज़्किरा बर्बादी-ए-दिल कामैं बिगड़ा हूँ तो अफ़्साना बना हूँ उन की महफ़िल का
अफ़सर सिद्दीक़ी अमरोहवी
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ना'त-ओ-मनक़बत
तज़्किरा सुनिए अब उन का दिल-ए-बेदार के साथजिन का ज़िक्र आता है अक्सर शह-ए-अबरार के साथ
पीर नसीरुद्दीन नसीर
शे'र
मुरीद-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना हुए क़िस्मत से ऐ नासेहन झाड़ें शौक़ में पलकों से हम क्यूँ सहन-ए-मय-ख़ाना
इब्राहीम आजिज़
ग़ज़ल
ख़लील सफ़िपुरी
फ़ारसी कलाम
अज़ हुस्न-ए-मलीह-ए-ख़ुद शोरे ब-जहाँ कर्दीहर ज़ख़्मी-ए-बिस्मिल रा मसरूफ़-ए-फ़ुग़ाँ कर्दी
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
इब्राहीम आजिज़
ना'त-ओ-मनक़बत
मुज़्तरिब हूँ कर रहा हूँ तज़्किरा 'अब्बास कानाम लब पर आ रहा है बारहा 'अब्बास का
सक़लैन अहमद जाफ़री
सूफ़ी लेख
तज़्किरा यूसुफ़ आज़ाद क़व्वाल
इस्माई’ल आज़ाद के हम-अ’स्रों में सबसे ज़्यादा शोहरत यूसुफ़ आज़ाद को नसीब हुई। यूसुफ़ एक इंतिहाई
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
तज़्किरा इस्माई’ल आज़ाद क़व्वाल
ग्यारहवीं सदी ईसवी से मौजूदा बीसवीं सदी तक क़व्वाली ने कई मंज़िलें तय कीं लेकिन ये