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शे'र
किया जो मुझ तरफ़ गुल-रू नज़र आहिस्ता आहिस्तावो पहुँची बुलबुल-ए-दिल कूँ ख़बर आहिस्ता आहिस्ता
तुराब अली दकनी
ग़ज़ल
किया जो मुझ तरफ़ गुल-रू नज़र आहिस्तः आहिस्तःओ पहुँची बुलबुल-ए-दिल कूँ ख़बर आहिस्तः आहिस्तः
तुराब अली दकनी
कलाम
इक़बाल सफ़ीपुरी
सूफ़ी कहावत
हर कि गर्दन बदावा अफ़राज़द। दुश्मन अज़ हर तरफ़ बदू ताज़द।
वह जो अपने सर को दावे से ऊंचा उठाता है, उस पर सभी ओर से दुश्मन हमला कर सकते हैं।
वाचिक परंपरा
शे'र
क्यूँ-कर न क़ुर्ब-ए-हक़ की तरफ़ दिल मिरा कीजिएगर्दन असीर-ए-हल्क़ा-ए-हबल-उल-वरीद है
बेदम शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
जहाँ में हर तरफ़ फैला उजाला ग़ौस-ए-आ'ज़म कामिला रस्तों को भी रौशन इशारा ग़ौस-ए-आ'ज़म का
सय्यद अमजद हुसैन
सूफ़ी कहावत
तारुफ़ कम कुन-ओ-बर मब्लग़ अफ़जाय
अपना परिचय को सीमित कीजिए और अपनी पुँजी को बढ़ाइए
वाचिक परंपरा
ग़ज़ल
है वो एक जल्वः इधर-उधर कभी इस तरफ़ कभी उस तरफ़कभी अर्श पर कभी फ़र्श पर कभी इस तरफ़ कभी उस तरफ़