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सूफ़ी कहावत
हर कि गर्दन बदावा अफ़राज़द। दुश्मन अज़ हर तरफ़ बदू ताज़द।
वह जो अपने सर को दावे से ऊंचा उठाता है, उस पर सभी ओर से दुश्मन हमला कर सकते हैं।
वाचिक परंपरा
कलाम
ख़ुदा महफ़ूज़ रखे 'इश्क़ के जज़्बात-ए-कामिल सेज़मीं गर्दूं से टकराई जहाँ दिल मिल गया दिल से
अज़ीज़ मेरठी
फ़ारसी कलाम
ऐ सर्व-ए-नाज़नीने ऐ तुर्क-ए-बे-नियाज़ेशोरे ज़दी ब-'आलम अज़ क़ामत-ए-दराज़े
पीर नसीरुद्दीन नसीर
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ जान-ए-मा ऐ जान-ए-मा ऐ कुफ़्र-ओ-ईमान-ए-माख़्वाहम कि ईं ख़र-मोहरः रा गौहर कुनी दर कान-ए-मा
रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ 'आशिक़ाँ ऐ 'आशिक़ाँ मन 'आशिक़-ए-फ़रज़ानः-अमबा-शम'-ए-वसलश दर जहाँ परवान:-अम परवान:-अम
रूमी
ग़ज़ल
ऐ 'अक्स-ए-जमाल-ए-लम-यज़ली ऐ शम-ए'-तजल्ला क्या कहनाऐ नूर-ए-हिजाबात-ए-फ़ितरत ऐ हुस्न-ए-सरापा क्या कहना
मंज़ूर आरफ़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ बाग़बाँ ऐ बाग़बाँ आमद ख़िज़ाँ आमद ख़िज़ाँबर शाख़-ओ-बर्ग अज़ दर्द-ए-दिल ब-निगर निशाँ ब-निगर निशाँ
रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ आशिक़ाँ ऐ आशिक़ाँ हंगाम-ए-कूच अस्त अज़ जहाँदर गोश जानम मी-रसद तबल-ए-रहील अज़ आसमाँ