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शे'र
करे चारों तरफ़ से क्यूँ न उस को आसमाँ सजदेज़मीं को फ़ख़्र हासिल है रसूलल्लाह की मरक़द का
शाह अकबर दानापूरी
ग़ज़ल
न ज़मीन रोक पाई न रुका हूँ आसमाँ सेतिरी जुस्तुजू में गुज़रा मैं हुदूद-ए-ला-मकाँ से
मुजीबुल हसन नव्वाबी
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ ज़मीन-ए-कर्बला तूही नहीं गिर्या-कुनाँबल्कि रोएँगे क़यामत तक ज़मीन-ओ-आसमाँ
अख़्तर महमूद वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
हफ़्त-आसमाँ हैं फ़र्श-ए-निआ'ल-ए-अबुल-ओ'लाअल्लाह रे औज-ओ-जाह-ओ-जलाल अबुल-उ'ला
बेदम शाह वारसी
कलाम
निशात-ओ-कैफ़ का आ'लम ज़मीं से आसमाँ तक हैख़ुदा मा'लूम तेरे हुस्न की दुनिया कहाँ तक है
माहिरुल क़ादरी
शे'र
अज़ल से है आसमाँ ख़मीदा न कर सका फिर भी एक सजदावो ढूँढता है जिस आस्ताँ को वो आस्ताना मिला नहीं है
अफ़क़र मोहानी
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ ज़मीं तुझ पर नुज़ूल-ए-आसमाँ होने को हैगोया नूर ख़ालिक़-ए-'आलम अ'याँ होने को है
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
ग़ज़ल
ज़ेब-ए-ज़मीं नहीं कि तू ज़ीनत-ए-आसमाँ नहींआँख अगर नसीब हो जल्वा तिरा कहाँ नहीं