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सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
फ़रोग़-ए-उर्दू
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सुलूक-ए-नक़्शबंदिया - नासिर नज़ीर फ़िराक़ चिश्ती देहलवी
उस बक़ा को कहते हैं जो अपनी फ़ना पर क़ाइम होती है और चूँकि ये फ़ना
निज़ाम उल मशायख़
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कबीर दास
दुखिया दास कबीर है जागै और रोवैसारी दुनिया ख़ुशी की ज़िंदगी बसर करती है आराम से
ज़माना
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Malangs of India
सातवी हिजरी में लिखी हुई प्रसिद्द किताब फ़वायद उल फ़ुवाद ( जिसमे हज़रत निजामुद्दीन औलिया के
सुमन मिश्रा
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क़ुतुबल अक़ताब दीवान मुहम्मद रशीद उ’स्मानी जौनपूरी
6۔ नुज़हतुल –ख़्वातिर जिल्द-ए- पंजुम सफ़ हा367 में भी दीवान साहब का मुख़्तसर मगर जामे’ इज़्किरा
हबीबुर्रहमान आज़मी
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गीता और तसव्वुफ़ - मुंशी मंज़ूरुल-हक़ कलीम
चौथे बाब में बयालिस मंत्र हैं जिनका ख़ुलासा ये है कि रूह ला-ज़वाल, मुहीत और क़दीम
ज़माना
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
बन-बन के खेल ऐसे लाखों बिगड़ गए हैंमज़मून ख़त्म हो गया । पढ़ने के बा’द हर
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
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हज़रत शैख़ सारंग
शैख़ सारंग कभी कभी अपने पीर शैख़ क़व्वामुद्दीन अ’ब्बासी की ख़िदमत में लखनऊ जाते और फ़ैज़