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सूफ़ी लेख
बिहार में क़व्वालों का इतिहास
बद्र-उल-हसन एमादी लिखते हैं कि-‘‘उनके सम्मान में फ़र्क़ आ गया, बुढ़ापा बुरी बला है, आफ़ियत की
रय्यान अबुलउलाई
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समकालीन खाद्य संकट और ख़ानक़ाही रिवायात
तवाज़ो’ तबीअ’त में बहुत थी। ख़ानक़ाह में फ़ुक़रा आते और क़याम करते थे।उनकी बड़ी सैर चश्मी
रहबर मिस्बाही
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चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
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ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी - आ’बिद हुसैन निज़ामी
सूफ़ीनामा आर्काइव
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सुल्तान सख़ी सरवर लखदाता-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
दरगाह के मुजाविरजो ज़ाइरीन बाहर से आते हैं वो सब मुजाविरों के घरों पर उतरते हैं
सूफ़ी
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Sheikh Naseeruddin Chiragh-e-Dehli
हज़रत कि ख़ानक़ाह में मुरीदों से अच्छी तरह पड़ताल की जाती थी कि किसी तरह उनका
सुमन मिश्रा
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समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर मुन्हसिर क़व्वालों को आज भी साल मे तीन दफ़ा ख़ुराक
सुमन मिश्रा
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समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर मुन्हसिर क़व्वालों को आज भी साल मे तीन दफ़ा ख़ुराक
सुमन मिश्रा
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रेडियो और क़व्वाली
एक सबसे बड़ी अफ़सोसनाक बात ये है कि ख़ुद क़व्वाली के फ़नकार भी अभी तक क़व्वाली
अकमल हैदराबादी
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ग्रामोफ़ोन क़व्वाली
प्रसिद्ध किताब ‘सियर-उल-औलिया’ में कई पेशेवर क़व्वालों का ज़िक्र आया है। इससे पता चलता है कि