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सूफ़ी लेख
हज़रत सयय्द अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी का पंडोह शरीफ़ से किछौछा शरीफ़ तक का सफ़र-अ’ली अशरफ़ चापदानवी
सूफ़ीनामा आर्काइव
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हज़रत मख़्दूमा बीबी कमाल, काको
बिहार में मुसलमानों की आमद से पहले काको में हिन्दू आबादी थी, यहाँ कोई राजा या
रय्यान अबुलउलाई
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चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
उख़ुव्वत की जहाँ-गीरी, मोहब्बत की फ़रावानीइस बर्र-ए-सग़ीर का शाएद ही कोई ऐसा गोशा हो जहाँ चिश्ती
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
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हिन्दुस्तान में क़ौमी यक-जेहती की रिवायात-आ’ली- बिशम्भर नाथ पाण्डेय
ये सही है कि मुल्क में ज़बान के मसले को लेकर, इलाक़ाई सवालों को लेकर, ज़ात
मुनादी
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
दरख़्त ऐ पिसर बाशद अज़ बीख़ सख़्तये जड़ों ही की मज़्बूती थी कि दिल्ली का सर-सब्ज़-ओ-शादाब
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
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हाजी वारिस अ’ली शाह का पैग़ाम-ए-इन्सानियत - डॉक्टर सफ़ी अहमद काकोरवी
उन्नीसवीं सदी का दौर है। अवध की फ़िज़ा ऐ’श-ओ-इ’श्रत से मा’मूर है। फ़ौजी क़ुव्वतें और मुल्की
मुनादी
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समकालीन खाद्य संकट और ख़ानक़ाही रिवायात
ये सूफ़िया-ए-किराम की पाकीज़ा ता’लीमात की ही देन है कि आज भी दुनिया में सालों भर
रहबर मिस्बाही
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बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन फ़िरंगी महल्ली
उन सूफ़ियों और संतों के पास बैठने से इन्सान की समझ में ये भी आ जाता
मुनादी
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रेडियो और क़व्वाली
हिन्दोस्तान में रेडियो बीसवीं सदी के इब्तिदाई दहों में पहुंचा, यही वो ज़माना था जबकि क़व्वाली