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सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
अनँत कला तुव रूपी।।1।।बिगस्यो कमल फुल्यो काया बन,
हिंदुस्तानी पत्रिका
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मधुमालती नामक दो अन्य रचनाएँ - श्रीयुत अगरचंद्र नाहटा
मधु मधु कहै खिलावै तात। बढै कला मानु दिन रात।अंत-
हिंदुस्तानी पत्रिका
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जायसी और प्रेमतत्व पंडित परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल्.-एल्. बी.
बिरहा कठिन काल कै कला। बिरह न सहै काल बरु भला।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उड़िया में कृष्ण–भक्ति-साहित्य, श्री गोलोक बिहारी धल - Ank-1, 1956
तहुँ कलाए नन्दबलाकृष्ण जगन्नाथ की कला का सोहलवाँ भाग है।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
मंझनकृत मधुमालती - श्री चंद्रबली पाँडे एम. ए.
गयो मयंक स्वर्ग जेहि लाजा। सो लिलाट कामिनि पहँ छाजा।।सहस कला देखी उजियारा। जग ऊपर जगमगत लिलारा।।“
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
मीरां के जोगी या जोगिया का मर्म- शंभुसिंह मनोहर
1. रसीले राज जोगिया की मिहर सों सुख की लहर ले जोग की कला में आए राधा नंद कुंवार।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
देव और बिहारी विषयक विवादः उपलब्धियाँ- किशोरी लाल
रीतियुग की काव्य-रचना ऐहिक जीवन के मादक एवं सरस प्रभावों से पूर्ण तथा अनुप्राणित रही है,
हिंदुस्तानी पत्रिका
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रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
इन संख्याओं के प्रयोग से जो उलझन या रहस्यात्मकता उत्पन्न की गई है, वह हिन्दी संत-काव्य
भारतीय साहित्य पत्रिका
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औघट शाह वारसी और उनका कलाम
औघट शाह वारसी साहब ने सूफ़ीमत के भाव पक्ष के साथ साथ कला पक्ष को भी
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
इसी अन्योक्ति-पद्धति को कवीन्द्र रवीन्द्र ने आज फल अपने विस्तृत प्रकृति-निरीक्षण के बल से और अधिक
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
तुलसीदासजी की सुकुमार सूक्तियाँ- राजबहादुर लमगोड़ा
ऐसी देवी को उत्पन्न कर ब्रह्मा का गर्वान्वित होना कोई आश्चर्य की बात नहीं, तथा संपूर्ण
माधुरी पत्रिका
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जौनपुर की सूफ़ी परंपरा
2. दूसरी बड़ी घटना इब्राहीम शाह के बादशाह हो जाने के बा’द हुई. इब्राहीम शाह ने
सुमन मिश्रा
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अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
खु़सरों कहीं बाहर किसी मुहिम पर थे कि पीछे अचानक कुछ आगे-पीछे माता और भाई, दोनों
माधुरी पत्रिका
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अलाउल की पद्मावती - वासुदेव शरण अग्रवाल
अलाउल ने जायसी के शब्दानुवाद तक अपने को सीमित नहीं रक्खा। एक प्रकार से यह एक