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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(223) रोटी जली क्यों, घोड़ा अड़ा क्यों,पान सड़ा क्यों?
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(247)जानवर और बंदू में क्या निसबत है? उत्तर- मक्खी, घोड़ा तोता, कुत्ता
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीर के कुछ अप्रकाशित पद ओमप्रकाश सक्सेना
लेहे लगाम ज्ञान कर घोड़ा, सूरत निरत चीत मटका। सेजे चडु सत्य गुरु जी के बचने, तो मीट गया मन का भटका।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
ज़फ़राबाद की सूफ़ी परंपरा
सैयद सदरुद्दीन मक्कीआप मख़दूम आफ़ताब-ए -हिन्द के छोटे बेटे, मुरीद ओ ख़लीफ़ा थे. आप का जन्म
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हज़रत सयय्द अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी का पंडोह शरीफ़ से किछौछा शरीफ़ तक का सफ़र-अ’ली अशरफ़ चापदानवी
हिन्दुस्तान की तरफ़ कूचः-अपनी मादर-ए-मेहरबान ख़दीजा बेगम के हुक्म के ब-मूजिब जो अपने वक़्त की राबिआ’
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
अगली सुब्ह को सबकी सवारी के लिए ताज़ा-दम घोड़े आ गए। हज़रत निज़ामुद्दीन को जो घोड़ा
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
हर गुले कज़ बाग़–ए-उ’म्रश बशगफ़द बे-ख़ार बादजो शख़्स काँटे बिछाने वाले को दुआ’ दे कि उस
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
सूफ़ी लेख
महाकवि माघ और उनका काव्य सौन्दर्य- श्री रामप्रताप त्रिपाठी, शास्त्री
ऊँटों तथा जंगली सांड़ों और बैलो की प्रकृति का कवि ने इतना स्वाभाविक और सुन्दर वर्णन
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत ख़्वाजा नूर मोहम्मद महारवी - प्रोफ़ेसर इफ़्तिख़ार अहमद चिश्ती सुलैमानी
मियाँ नूर बख़्श महारवी से मंक़ूल है कि कोट मट्ठन के क़रीब एक क़ाज़ी साहिब रहते
मुनादी
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की दूसरी क़िस्त
-वास्तव में विद्याध्ययन का विशेष फल यही है कि इसके द्वारा भगवान् की महिमा का ज्ञान
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की पाँचवी क़िस्त
अब इस रहस्य को तुम दीपक के दृष्टान्त से समझने का प्रयत्न करों। यह स्थूल शरीर
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
पदमावत की एक अप्राप्त लोक कथा-सपनावती- श्री अगरचन्द नाहटा
गोर भी चलते 2 धूर्तों की नगरी में पहुँचा। रास्ते में एक साहूकार मिला। वह उस
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ जमालुद्दीन कोल्हवी
मैंने अभी इसका कुछ जवाब न दिया था कि शैख़ नूरुल-हसन साहिब एक हिंदू रईस-ज़ादा को
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
हज़रत ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन मुनव्वर निज़ामी
हज़रत ने पूछा कहा इस जाने में मेरा इख़्तियार है या नहीं? हसन ने जवाब दिया
मुनादी
सूफ़ी लेख
मौलाना जलालुद्दीन रूमी
सौदागर ने वा’दा किया कि उस का पयाम-ओ-सलाम उस की क़ौम तक पहुंचा देगा। जब हिन्दोस्तान
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
थाली फेंको तो सरों पर जाये। मग़रिब के बा’द ही झरना से नफ़ीरी की आवाज़ आई।