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सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
फिर मुझे रुया में मुखड़े की झलक दिखलाइएफिर लगी बे-चैन करने आरज़ू दीदार की
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
निसि मुद्रित, प्रातहि वै बिगसत, ये बिगसत दिन राति।। अरुन असित सित झलक पलक प्रति को बरनै उपमाय।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
गुजरात के सूफ़ी कवियों की हिन्दी-कविता - अम्बाशंकर नागर
वली की भाषा में गुजरातीपन की झलक देखकर भी उन्हें गुजराती मानने को जी चाहता है।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत कबीर की सगुण भक्ति का स्वरूप- गोवर्धननाथ शुक्ल
नाद नाही, बाद नाहीं, काल नहीं काया।आदि दत्त संप्रदाय की अवधूत गीता की निषेधात्मक शैली के
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’
पीर नसीर मस्त क़लंदर इंसान थे। वह कभी किसी ख़ास फ़िक्र या तंज़ीम का हिस्सा नहीं
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
मौलवी ग़ुलाम रसूल और मियां मुहम्मद बख़्श ने पहली बार अपने क़िस्सों में विदेशी क़िरदार लिए
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
मौलवी ग़ुलाम रसूल और मियां मुहम्मद बख़्श ने पहली बार अपने क़िस्सों में विदेशी क़िरदार लिए
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत मख़दूम अहमद चर्म-पोश
सूफ़ियों की तरह, उस समय के सुल्तान जैसे फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ भी उनकी ख़ानक़ाह में अकीदत-मंदाना
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो के अ’हद की देहली - हुस्नुद्दीन अहमद
ये बात बड़ी ख़ुश-आइंद है कि सात सौ साल के बा’द हिन्दुस्तान में अमीर ख़ुसरो की
मुनादी
सूफ़ी लेख
तुलसीदासजी की सुकुमार सूक्तियाँ- राजबहादुर लमगोड़ा
यहाँ किसी ऐसा ईर्ष्या का लेश भी नहीं है, जो आगे चंद्रमा इत्यादि को समानता के
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सुफ़ियों का भक्ति राग
रामानन्द से पहले महाराष्ट्र में संत नामदेव (1270-1350) के द्वारा कृष्ण भक्ति का आन्दोलन आरम्भ हो
ख़ुर्शीद आलम
सूफ़ी लेख
हज़रत सूफ़ी मनेरी की तारीख़-गोई का एक शाहकार – रख़्शाँ अब्दाली, इस्लामपुरी
हज़रत सूफ़ी मनेरी (सन 1253 हिज्री ता सन 1318 हिज्री )अपने वक़्त के एक बा-कमाल शाइ’र
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
मीरां के जोगी या जोगिया का मर्म- शंभुसिंह मनोहर
इस गीत में ‘ईसर-गोरी’ के रूप में स्पष्ट ही किसी प्रेम-प्रेमिका का रूप झलक रहा है।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
When Acharya Ramchandra Shukla met Surdas ji (भक्त सूरदास जी से आचार्य शुक्ल की भेंट) - डॉ. विश्वनाथ मिश्र
सदा रहस पावस ऋतु हम पै जब ते श्याम सिधारे।।अवश्य गुनगुना उठा। उसके बाद, एक नयी