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सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
अंक माल ले बीठल मिले।।(2) अजामिल गज गनिका तारी काटी कुंजर की पास रे।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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आज रंग है !
प्रेम लसित पिचुकारी छूटत तारी दै दै बोलैतत्त बीर उड़त नभ छायो ज्ञानहीन मति तौलै
सुमन मिश्र
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ख़्वाजा गेसू दराज़ बंदा-नवाज़ - प्रोफ़ेसर सय्यद मुबारकुद्दीन रिफ़्अ’त
एक रोज़ किसी ने हज़रत मख़दूम से पूछा कि क्या बात है कि जब “हिंदवी” कलाम
सूफ़ीनामा आर्काइव
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समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
यह शे’र सुनकर ख़्वाजा साहब पर एक अजीब सी कैफ़ियत तारी हुई और इसी कैफ़ियत मे
सुमन मिश्र
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चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
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समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
यह शे’र सुनकर ख़्वाजा साहब पर एक अजीब सी कैफ़ियत तारी हुई और इसी कैफ़ियत मे
सुमन मिश्र
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तज़्किरा-ए-फ़ख़्र-ए-जहाँ देहलवी
मैंने ख़्वाब में देखा कि मेरे शैख़ुल-वहीद ने मुझे क़ुतुब साहिब के हवाले किया और हज़रत
निसार अहमद फ़ारूक़ी
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हज़रत सय्यिद मेहर अ’ली शाह - डॉक्टर सय्यिद नसीम बुख़ारी
आपका मा’मूल था कि फ़ज्र के वक़्त से दस बजे दिन तक ज़िक्र-ओ-अज़्कार में अपने आपको
मुनादी
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क़ुतुबल अक़ताब दीवान मुहम्मद रशीद उ’स्मानी जौनपूरी
जब तक अपने हाथ से काम होता रहे दूसरों से लेना बेहतर नहीं दोस्तों की सोहबत