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शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
है जहाँ लाला-ज़ार आँखों मेंकुछ उड़ी जाती है निगाह अपनी
मयकश अकबराबादी
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कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
बृंद नंद बल्लभ सुकवि कियउ पढाय पढाय।। फिर अति महर निगाह कर करी धान्य धन वृद्धि
भारतीय साहित्य पत्रिका
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हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
दिल अगर इस ख़ाक में ज़िंदा-ओ-बेदार होतेरी निगाह तोड़ दे आईना-ए-महर-ओ-माह
मुनादी
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मैकश अकबराबादी
मेरी निगाह ने हस्ती को दी है ज़ौ मैकशमैं देख लूं तो ये मोती है वर्ना शबनम है
शशि टंडन
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उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
फिर हुईं पुर-नूर आँखें रौज़न-ए-दीवार कीहो गई तीर-ए-निगाह-ए-नाज़ की शायद हदफ़
सुमन मिश्रा
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
लग गया ना-गाह उस पर ये तेरा तीर-ए-निगाहदिल का शीशा जो बग़ल में हमने देखा चूर था
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
औघट शाह वारसी और उनका कलाम
गुफ़्ता चे सेह्र-ए-सामरी गुफ़्तम निगाह-ए-नाज़-ए- तूगुफ़्ता कि वारस्त: कुनद गुफ़्तम कि ईं जादू-ए-तू
सुमन मिश्रा
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बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन फ़िरंगी महल्ली
मुनादी
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दाता गंज-बख़्श शैख़ अ'ली हुज्वेरी
चहारुमः जब लोगों में आए तो अपनी ज़बान को निगाह रख।पंजुमः ख़ुदा तआ’ला ’अज़्ज़-ओ-जल्ल को फ़रामोश मत कर।