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सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
कह बरनों अनुरूपी।निरगुन नाम निरंतर निरखों,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत सैयद ज़ैनुद्दीन अ’ली चिश्ती
उनका घराना पाकीज़ा है इसलिए दिल को वो पसंद आ गया हैसेख जुनैदी सेवता पाप निरंतर बह जाई
सय्यद रिज़्वानुल्लाह वाहिदी
सूफ़ी लेख
जौनपुर की सूफ़ी परंपरा
शैख़ सदरुद्दीन साबित मदारीआप जौनपुर के निवासी थे और हज़रत शाह मदार के ख़लीफ़ा थे. जनश्रुति
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
जायसी और प्रेमतत्व पंडित परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल्.-एल्. बी.
तजे चरन अजहूँ न मिटत नित बहिवो ताहू केरो।।अर्थात् ऐ मन! स्वयं चंद्रमा एवं सूर्य तक
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
‘कृष्ण का रूप तो तुम पी गई हो’, वह तुम्हारे हृदय में रह गया है (तुम
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
“कहने का तात्पर्य यह है कि गोरक्षनाथ के पूर्व ऐसे बहुत से शैव, बौद्ध और शाक्त
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
उदासी संत रैदास जी- श्रीयुत परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल-एल. बी.
-पद, 53अर्थात् ब्रह्म और जीव दोनों, वास्तव में, एक ही है, किंतु भ्रमवश दोनों के नीचे
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत कबीर की सगुण भक्ति का स्वरूप- गोवर्धननाथ शुक्ल
कबीर में कुत्ते जैसी खामी, निर्भरता और आश्रयभावना कूट कूट कर भरी हुई है। भगवान पर
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
शाह तुराब अली क़लंदर और उनका काव्य
सूफ़ियों ने अपने अनुभव को जन्म के अंधे का स्वप्न, या गूंगे के गुड़ खाने से
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
यह खु़सरो की उस भूमिका का भावार्थ है, जो उस ने अपने पहले दीवान ‘तोहफ़तुस्सिग़र’ पर
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
तुलसीदासजी की सुकुमार सूक्तियाँ- राजबहादुर लमगोड़ा
यह प्रथम ही कहा जा चुका है कि तुलसीदासजी के नाटकीय सिद्धातांनुसार कवि निरंतर ही रंगमंच
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अल्बेरूनी -प्रोफ़ेसर मुहम्मद हबीब
“हिंदू लोग आपस में ही इस विषय पर बहुमत है कि कौन कौन वर्ण वाले मुक्ति