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हज़रत ख़्वाजा गेसू दराज़ चिश्ती अक़दार-ए-हयात के तर्जुमान-डॉक्टर सय्यद नक़ी हुसैन जा’फ़री
मुनादी
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दूल्हा और दुल्हन का आरिफ़ाना तसव्वुर
होरी खेलूंगी कह बिस्मिल्लाहनाम नबी की रतन चढ़ी बूंद अल्लाह अल्लाह
शमीम तारिक़
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हज़रत बंदा नवाज़ गेसू दराज़ - सय्यिद हाशिम अ’ली अख़तर
1. खाना शुरूअ’ करे तो बिस्मिल्लाह कहे2.तलब-ए-रिज़्क़ में ग़मगीन न रहे
मुनादी
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हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
रंग उस दर्गह के हर ज़र्रा में है तौहीद काताएरान-ए-बाम भी ताएर हैं बिस्मिल्लाह के
सूफ़ीनामा आर्काइव
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बिहार में क़व्वालों का इतिहास
सन् 1905 के आस-पास ख़ैराबाद के क़व्वाल अब्दुल वाहिद और असग़र हुसैन आते थे। उन लोगों
रय्यान अबुलउलाई
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह ग़फ़ूरुर्रहमान हम्द काकवी
ख़ुद लिखते हैं ”जब चार साल की उ’म्र हुई तो मेरे हक़ीक़ी मामूँ क़ाज़ी अहमद बख़्श
रय्यान अबुलउलाई
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह अकबर दानापुरी
जब आप चालिस दिन के हुए तो आप की वालिदा बसीरून निसा उर्फ़ बशीरन बिंत-ए- सय्यद
रय्यान अबुलउलाई
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
अम्माँ मैं तुम्हारा मतलब समझ गया, सैर की तारीख़ मुक़र्रर हो गई है। आज दस है