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सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
रोज़-ए-हुशियारी न-बूदम बुत परस्त ।बुत परस्तीदम चूं गश्तम मस्त मस्त ।।
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बिहार के प्रसिद्ध सूफ़ी शाइर – शाह अकबर दानापुरी
जो काबे का काबा हो बुत–ख़ाने का बुत–ख़ानादाइम उन्हीं हाथों से पीते रहे हैं मतवाले
सुमन मिश्रा
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उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
नैन पलक चितवन नहीं, पाथर गोल सिडौलमन पंड़ित का क्यूँ भयो बुत पर डाँवा-डोल
ज़माना
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बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से) - डॉक्टर मसऊ’द अनवर अ’लवी
जुज़्व ऐसा कौन है जिसमें वजूद-ए-कुल नहीं॥का’बा हो या बुत-कदा हो यारो।
मुनादी
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हज़रत अ’लाउद्द्दीन अहमद साबिर कलियरी
ऐ शैख़ बुत-परस्ती ईमाँ शुदस्त मा रादर महफ़िल-ए-गदायाँ मुर्सल कुजा ब-गुंजद
सूफ़ीनामा आर्काइव
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मैकश अकबराबादी
बुत-ख़ाने तिरी ज़ुल्फ़ से ता’मीर किए हैंअब्रू को तिरी ताक़-ए-हरम हमने किया है
शशि टंडन
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अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
दिल! उस बुत-ए-फिरंग से मिलने की शक्ल क्या, मेरा तरीक़ और है, उस की है शान और।
माधुरी पत्रिका
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उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
जल्वागर है इस तरह जैसे हो शीशा में परीदिल के आईना में सूरत उस बुत-ए-अ’य्यार की
सुमन मिश्रा
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हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
हर चे बीनी दोस्त बीं बा ईन-ओ-आनत कार नीस्तचंद मी-गोई ब-रोज़-ए-नारबंद ऐ बुत परस्त