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सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
ख़ामुशी मुम्किन नहीं ख़ुद-कर्दा-ए-गुफ़्तार सेसख़्त है मेरी मुसीबत सख़्त घबराया हूँ मैं
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
उ’म्र भर ऐ’श की घड़ियों को गुज़ारे कोईदफ़्अ ’तन कोह-ए-मुसीबत को वो क्यों कर काटे
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
फुर्क़त की मुसीबत को दिल-ए-आज़ार से कह दोझुकता नहीं ये दिल तरफ़-ए-क़िब्ला-ए-आ’लम
मयकश अकबराबादी
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बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से) - डॉक्टर मसऊ’द अनवर अ’लवी
(हज़रत-ए-आदम की औलाद में तमाम लोग एक दूसरे के हिस्से हैं,क्योंकि अपनी पैदाइश के ए’तबार से
मुनादी
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हज़रत बंदा नवाज़ गेसू दराज़ - सय्यिद हाशिम अ’ली अख़तर
विसालगुल्बर्गा शरीफ़ में 22 साल तक रुश्द-ओ-हिदायत का सिलसिला जारी रखा।जब उ’म्र शरीफ़ 104 साल की
मुनादी
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समकालीन खाद्य संकट और ख़ानक़ाही रिवायात
दूसरी आ’लमी जंग के बा’द से दुनिया मुहाजिरीन और पनाह-गुज़ीनों के बद-तरीन बोहरान से दो-चार हैं।आज
रहबर मिस्बाही
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हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि
अस्हाब-ए-रज़ा चार क़िस्म के होते हैं।एक ख़ुदावंद तआ’ला की अ’ता (ख़्वाह वो कैसी ही हो) पर
सूफ़ीनामा आर्काइव
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चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
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बिहार में क़व्वालों का इतिहास
‘‘सैंकड़ों आदमी ऐसे देखे जो ठाठ में रईसों का मुक़ाबला करते थे, लेकिन आज उनकी हस्ती