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सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो की सूफ़ियाना शाइ’री - डॉक्टर सफ़्दर अ’ली बेग
दर न-याई ब-फ़ह्म-ए-आ’लमियाँ।वर्ना गुंजी बःवह्म-ए-आदमियाँ।।
फ़रोग़-ए-उर्दू
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हज़रत मौलाना ज़ियाउद्दीन नख़्शबी
नख़्शबी दर इ’ताब-ए-ख़ुदी बाशवर्ना ख़ुद बातिन-ए-तू ख़ूँ गर्दद
सय्यद सबाहुद्दिन अब्दुल रहमान
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मैकश अकबराबादी
इस दर्जा दुश्मनी तो मुक़द्दर की बात हैवर्ना वो एक उ’म्र मिरे राज़-दाँ रहे
शशि टंडन
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उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
ऐ फ़रिश्तो सोच कर मद्दाह से करना सवालवर्ना मैं दूँगा दुहाई अहमद-ए-मुख़्तार की
सुमन मिश्र
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शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
वर्ना दिल-ए-आगाह मिरा तँग न होताअपना ही कुछ तसर्रुफ़-ए-औहाम है कि हम
मयकश अकबराबादी
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
उसके चेहरा पर ख़ुदा जाने ये कैसा नूर थावर्ना ये दीवानगी कब इ’श्क़ का दस्तूर था
रय्यान अबुलउलाई
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अमीर ख़ुसरो और इन्सान-दोस्ती - डॉक्टर ज़हीर अहमद सिद्दीक़ी
आंचे मुक़द्दर शुद अस्त चूँ न-बुवद बेश-ओ-कम।गर ब-रसद ख़ुर्रम वर्ना रसद बाक नीस्त।।
फ़रोग़-ए-उर्दू
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ख़्वाजा बुज़ुर्ग शाए’र के लिबास में - ख़्वाजा मा ’नी अजमेरी
दूसरे सवाल के जवाब में ब-तकल्लुफ़ ये कहना पड़ेगा कि मुल्ला मुई’न काशफ़ी के दीवान की
सूफ़ीनामा आर्काइव
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ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी
नमाज़ के वक़्त होशयार हो जाने से मा’लूम होता है कि हज़रत की बे-ख़ुदी ग़ैर-इख़्तियारी नहीं
ख़्वाजा हसन सानी
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हज़रत शैख़ बुर्हानुद्दीन ग़रीब
तिलावत-ए-क़ुरआन मजीद के वक़्त अगर अ’ज़ाब-ओ-रहमत की आयत आए तो उस वक़्त तिलावत करने वाले तअम्मुल