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सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
हम सलात-ओ-सौम बे-हद दाश्त ऊ ।हेच सुन्नत रा फ़रो न-गुज़ाश्त ऊ ।।
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बिहार के प्रसिद्ध सूफ़ी शाइर – शाह अकबर दानापुरी
ये मुश्त–ए–ख़ाक बाद–ए–फ़ना हद से बढ़ गईकहते हैं लोग ढेर हमारे मज़ार को
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बिहार में क़व्वालों का इतिहास
तालिब-ए-वस्ल न हो आपको बे-दाद न करहौसला हद से ज़्यादा दिल-ए-नाशाद न कर
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
तुलसीदासजी की सुकुमार सूक्तियाँ- राजबहादुर लमगोड़ा
देखिए एक और है बारीकी। इस पद्यार्ध में ‘जनु’ शब्द नहीं है, यहाँ यह शब्द अवश्य
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’
लोग मानते हैं कि ना’त कहना दो-धारी तलवार पर चलने जैसा है, क्योंकि यह पैगम्बर हज़रत
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
सुक्र और मस्ती की हालत में एक बार मोंछें शरई’ हुदूद से बहुत बढ़ गई थीं।किसी
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
हज़रत मख़्दूम दरवेश अशरफ़ी चिश्ती बीथवी
हज़रत मख़्दूम शाह दरवेश बचपन से ही सैर-ओ-तफ़रीह के दिल- दादा थे। इसके अ’लावा फ़न्न-ए-कुश्ती से