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सूफ़ी लेख
शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है ?
लेकिन दर शाइ’री ब-इज्मा’-ए-उममहरगिज़ मन-ओ-सा’दी ब-इमामी न-रसेम
एजाज़ हुसैन ख़ान
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अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
हरगिज़ महल नहीं है किसी एहतिमाल काबस नस्र में भी मुझको तलम्मुज़ जो है तो ये
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत हसन जान अबुल उलाई
दोश दर गोशम सदा आमद ज़े हक़ चूँ अर्ग़नूनऐ हसन हरगिज़ न-याबी राज़-ए-मौत-ओ-ज़िंदगी
रय्यान अबुलउलाई
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दाता गंज-बख़्श शैख़ अ'ली हुज्वेरी
ऐ चसाँ कज़ तू अगर ख़्वाहम लिक़ागर कुनी आरे म-कुन हरगिज़ तू ला
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
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हज़रत शाह नियाज़ बरेलवी की शाइरी में इरफान-ए-हक़
कि हुशयाराँ बरा-ए-बे-हशी दारंद माज़ूरतजवाब-ए-रब्बि-अरिनी, लन-तरानी नशनुदी हरगिज़
अहमद फ़ाख़िर
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मसनवी की कहानियाँ -5
इसीलिए दुनिया के बुज़ुर्गों ने कहा है कि ”ज़बान की हिफ़ाज़त इन्सान की राहत है”। हदीस
सूफ़ीनामा आर्काइव
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शम्स तबरेज़ी - ज़ियाउद्दीन अहमद ख़ां बर्नी
एक दीवान जिसमें तक़रीबन पचास हज़ार अश्आ’र हैं शम्स तबरेज़ के नाम से मंसूब किया जाता
ख़्वाजा हसन निज़ामी
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क़व्वाली का माज़ी और मुस्तक़बिल
हक़ीक़त ये है कि क़व्वाली का एक दौर वाइ’ज़ पर ख़त्म हो गया।उसके बा’द जो चीज़
मुनादी
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बाबा फ़रीद के श्लोक- महमूद नियाज़ी
शैख़ इब्राहीम का लक़ब ‘फ़रीद’ सानी था न कि नाम। इसलिए उनका कलाम जहाँ भी नक़ल
मुनादी
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बाबा फ़रीद के मुर्शिद और चिश्ती उसूल-ए-ता’लीम-प्रोफ़ेसर प्रीतम सिंह
(6) कहते हैं कि शैख़ क़ुतुबुद्दीन (रहि.) ने बाबा फ़रीद को चिल्ला-ए-मा’कूस करने की हिदायत फ़रमाई
मुनादी
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समाअ’ और आदाब-ए-समाअ’- मुल्ला वाहिदी देहलवी
उ’लमा के एक गिरूह ने समाअ’ को हराम क़रार दिया है।अल्लाह की मोहब्बत के मा’नी उनके
मुनादी
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Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
(मैं रूम से शाम तक सफ़र करता रहा मगर मेरे दिल को एक लम्हा आराम मयस्सर
सुमन मिश्रा
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हज़रत शरफ़ुद्दीन अहमद मनेरी रहमतुल्लाह अ’लैह
तर्क-ए-दुनिया का इंहिसार ज़ुहद पर है।ज़ुहद की दो क़िस्में हैं।एक तो वो जिस पर बंदा का
सूफ़ीनामा आर्काइव
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हज़रत मख़्दूम दरवेश अशरफ़ी चिश्ती बीथवी
हज़रत मख़्दूम शाह दरवेश बचपन से ही सैर-ओ-तफ़रीह के दिल- दादा थे। इसके अ’लावा फ़न्न-ए-कुश्ती से