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सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो और इन्सान-दोस्ती - डॉक्टर ज़हीर अहमद सिद्दीक़ी
न पहचान पाए तो इतना समझ लो ।शब-ए-हिज्र की फिर सहर भी न होगी ।।
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
हम ऊस्त कि अज़ चादर-ए-तू साख़्तः सर-पोशदर बादिया-ए-हिज्र चेरा बन्द ब-मानेम
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
दिल शब-ए-हिज्र की ज़ुल्मत से जो घबराता हैहम तिरे रुख़ के तसव्वुर में सहर करते हैं
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बेदम शाह वारसी और उनका कलाम
हम गमज़दों की मौत क्या और क्या हमारी ज़िन्दगीबस हिज्र की शब मौत है और वस्ल के दिन ज़िन्दगी
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो की शाइ’री में सूफ़ियाना आहँग
परेशाँ रोज़गारम बा कि गोयममुन्दर्जा बाला अश्आ’र में शाइ’र ने ये बयान किया कि है उसके
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
सूफ़ी लेख
ईद वाले ईद करें और दीद वाले दीद करें
सूफ़ी-संतों के यहाँ हिज्र की भी उतनी ही लज्जत है जितनी विसाल की. सूफ़ी ऐसा मानते
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो बुज़ुर्ग और दरवेश की हैसियत से - मौलाना अ’ब्दुल माजिद दरियाबादी
मातमी लिबास पहन लिया।सब कुछ लुटा दिया।ख़ाली हाथ हो बैठे ग़म की आग में जलते,हिज्र की
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी मौसीक़ी और अमीर ख़ुसरौ
मौसीक़ी फ़ितरत की ईजाद है लिहाज़ा फ़ितरत से ही अख़ज़ करके उसको तरतीब दिया गया है
उमैर हुसामी
सूफ़ी लेख
अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
अज़ीज़ सफ़ीपुरी की ग़ज़लों के मुतालि’ए से ये बात अज़ ख़ुद ज़ेहन पर मुनकशिफ़ होती है
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
सूफ़ी लेख
आगरा में ख़ानदान-ए-क़ादरिया के अ’ज़ीम सूफ़ी बुज़ुर्ग
आगरा की सूफ़ियाना तारीख़ उतनी ही पुरानी है जितनी ख़ुद आगरा की।आगरा श्री-कृष्ण के दौर से
फ़ैज़ अली शाह
सूफ़ी लेख
शम्स तबरेज़ी - ज़ियाउद्दीन अहमद ख़ां बर्नी
मुरीदों और शागिर्दों का ख़याल ये था कि इस अ’दम-ए-तवज्जोह का बा’इस शम्स का वजूद है।ज़ाहिर