परिणाम "कू-ब-कू"
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सहन-ए-हरम-ओ-कू-ए-सनम छोड़ दिया हैहर दर को तिरे दर की क़सम छोड़ दिया है
कर दिया कू-ब-कू मुझे रुस्वापर्दा-दारी जनाब ख़ूब रही
सूरत-परस्त बुलबुल-ए-वहशी-सा कू-ब-कूलाज़िम है 'आशिक़ों का कोई आशियाँ न हो
होता है ख़ुद-शनास ही 'फ़ाइक़' ख़ुदा-शनासआवारा जुस्तुजू में 'अबस कू-ब-कू न हो
मो'तकिफ़ गरचे ब-ज़ाहिर हूँ तसव्वुर में मगरकू-ब-कू साथ ये बे-पीर लिए फिरते हैं
रहनुमाओं की सी सूरत राह-मारी काम हैराह-ज़न हैं कू-ब-कू और रहनुमा मिलता नहीं
जो पिएगा न शराब आज वो मुजरिम होगाकू-ब-कू कल से तो कर दे ये मुनादी साक़ी
नज़र वो होके तिरा हुस्न रू-ब-रू आएजिधर भी देखो नज़र सिर्फ़ तू ही तू आए
यूँ वो महफ़िल में ब-सद शान बने बैठे हैंमेरा दिल और मिरी जान बने बैठे हैं
ख़ाक से ता-ब-कहकशाँ हम ने तो जब किया सफ़र'इश्क़ मिला क़दम-क़दम हुस्न मिला नज़र-नज़र
हर दम ख़याल-ए-जानाँ आँखों के रू-ब-रू हैदिल में मेरे समा जा मुद्दत से आरज़ू है
छुपा नहीं जा-ब-जा हाज़िर है प्याराकहाँ दो-चश्म जो मारें नज़ारा
करम साक़ी-ए-कौसर जो ब-दस्तूर रहेचश्म-ए-मय-कश में ख़ुमार-ए-मय-ए-मंसूर रहे
रू-ब-रू है शहर दरसन बे-नक़ाबदेक नासक बोलते हैं दर हिजाब
आईना-ए-नज़र को मैं रू-ब-रू रक्खा हूँजो देखता है मुझ को मैं उस को देखता हूँ
ऐ सनम मुझ को किसी से भी सरोकार नहीं ब-ख़ुदा तेरे सिवादीन-ओ-ईमान से भी मतलब मुझे ज़िन्हार नहीं मैं तो बंदा हूँ तिरा
दो-'आलम में नज़र आता है जल्वा सर-ब-सर अपनातमाशा देखता है आप हुस्न-ए-ख़ुद-निगर अपना
अ'दम से आई है निस्बत क़दम क़दम ब-क़दमख़ुदा ने कह लिया ख़ुद को सनम सनम ब-सनम
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करतेहम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तुगू करते
मेरे मह-जबीं ने ब-सद-अदा जो नक़ाब रुख़ से उठा दियाजो सुना न था कभी होश में वो तमाशा मुझ को दिखा दिया
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