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कलाम
जनाब-ए-वा'इज़ हमारी लग़्ज़िश हमारी हद तक वबाल होगीक़दम तुम्हारे जो डगमगाएँ तो डगमगा जाएगा ज़माना
कामिल शत्तारी
कलाम
जसद को फूँक ही देते हैं सूरत-ए-हैज़मजनाब-ए-इ'श्क़ न कुछ ख़ुश्क-ओ-तर को देखते हैं
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
जनाब-ए-ख़िज़्र हम को ख़ाक रस्ते पर लगाएँगेकि मंज़िल बे-ख़ुदों की है मुअर्रा क़ैद-ए-मंज़िल से
एहसान दानिश
कलाम
बहर-ए-वहदत में दिखाई दे रहा हूँ जों जनाबख़ुद हूँ दरिया मुझ में है अपनी समाई का घमंड
आशिक़ हैदराबादी
कलाम
किया बे-घाट है 'औघट' जनाब-ए-शाह-'वारिस' नेसमझ में ख़ुद नहीं आती है ऐसी अपनी मंज़िल है
औघट शाह वारसी
कलाम
विलायत में तो हज़रत के नहीं है मुझ को शक हरगिज़व-लेकिन नाज़ अज़ बस था जनाब-ए-शैख़-ए-सनआँ में
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
डरे गुनह से बला हमारी अज़ल के दिन से जनाब-ए-बारीहमारे आक़ा-ए-नामवर को शफ़ीअ'-ए-महशर बना चुके हैं