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कलाम
शब-ए-फ़ुर्क़त की तारीकी में शामिल है ग़ुबार अपनाउसी सहरा में खोया 'इश्क़ ने 'अह्द-ए-बहार अपना
मयकश अकबराबादी
कलाम
फ़ुर्क़त की हज़ारों रातों से इक रात सुहानी माँगी थीजो फूल के बोझ से दब जाए इक ऐसी जवानी माँगी थी
अज्ञात
कलाम
हम वस्ल में ऐसे खोए गए फ़ुर्क़त का ज़माना भूल गएसाहिल की ख़ुशी में मौजों का तूफ़ान उठाना भूल गए
कामिल शत्तारी
कलाम
जो तेरी याद फ़ुर्क़त में मिरी दम-साज़ बन जाएतो मेरे दिल की हर धड़कन तिरी आवाज़ बन जाए