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कलाम
गूढ़ ज़ुल्मात अंधेर ग़ुबाराँ राह ने ख़ौफ़ ख़तर दे हूआब हयात मुनव्वर चश्मे साए ज़ुलफ़ अंबर दे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
बहर-जल्वा न रुस्वा कर मज़ाक़-ए-चश्म-ए-हैराँ कोयही बातें निगाहों से गिरा देती हैं इंसाँ को
सीमाब अकबराबादी
कलाम
फ़ना का जाम ऐ साक़ी मैं पी-पी लूँ तू भर-भर देबक़ा की मय से आँखें मिस्ल-ए-नर्गिस-ए-मस्त कर-कर दे
अलाउद्दीन जलाली
कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
बहार-ए-जाँ-फ़ज़ा तुम हो नसीम-ए-दास्ताँ तुम होबहार-ए-बाग़-ए-रिज़वाँ तुम से है जे़ब-ए-जिनाँ तुम हो
मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान
कलाम
अंदर हू ते बाहर हौ हू बाहर कत्थे जलेंदा हूहू दा दाग़ मोहब्बत वाला हर-दम नाल सड़ेंदा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
तिरे कहने से मैं अज़-बस-कि बाहर हो नहीं सकताइरादा सब्र का करता तो हूँ पर हो नहीं सकता
ख़्वाजा मीर दर्द
कलाम
ज़ख़्मों से कलेजे को भर दे बर्बाद सुकून-ए-दिल कर देओ नाज़ भरी चितवन वाले आ और मुझे बिस्मिल कर दे