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कलाम
क्या कहें मिल्लत-ओ-दीं कुफ़्र है ईमाँ अपनापेश-ए-बुत-ए-सज्दा है और दैर है ऐवाँ अपना
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
ईमान सलामत हर कोई मंगे इश्क़ सलामत कोई हूमाँगण ईमान शरमावण इश्क़ोंं दिल नूँ ग़ैरत होई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
ईमान सलामत हर कोई मंगे इश्क़ सलामत कोई हूजिस मंज़ल नूँ इश्क़ पहुँचावे ईमान ख़बर न कोई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
क्या सलात-ओ-सोम-ओ-सज्दा और क्या ईमाँ का तोलइक निगाह-ए-नाज़-ए-जानाना है कुल आ'लम का मोल
अब्दुल हादी काविश
कलाम
यार था गुलज़ार था मय थी फ़ज़ा थी मैं न थालाएक़-ए-पा-बोस-ए-जानाँ क्या हिना थी मैं न था